दिल्ली का सफर
राघव दिल्ली के एक छोटे से कस्बे का रहने वाला था। उसका परिवार आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था, लेकिन राघव के सपने बड़े थे। उसके पिता एक मामूली नौकरी करते थे, और माँ गृहिणी थीं। राघव बचपन से ही पढ़ाई में होशियार था और उसने अपने कस्बे के स्कूल में हमेशा अच्छे अंक प्राप्त किए। लेकिन उसके सपने सिर्फ अच्छे अंक पाने तक सीमित नहीं थे। वह एक बड़ा आदमी बनना चाहता था और अपने परिवार की जिंदगी को बेहतर बनाना चाहता था।
12वीं की परीक्षा के बाद, राघव ने दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने का निश्चय किया। यह निर्णय उसके लिए आसान नहीं था, क्योंकि दिल्ली जैसे बड़े शहर में जाकर पढ़ाई करने के लिए काफी पैसे की जरूरत थी। लेकिन राघव के माता-पिता ने उसकी हिम्मत को देखते हुए उसे जाने की इजाजत दी और अपने थोड़े से पैसे बचा कर उसकी पढ़ाई के लिए भेज दिया।
दिल्ली में राघव के लिए सब कुछ नया था। बड़ा शहर, भीड़-भाड़, तेज रफ्तार जिंदगी – यह सब कुछ उसके कस्बे से बिल्कुल अलग था। शुरुआत में उसे मुश्किलें आईं, लेकिन वह अपने सपने को पूरा करने के लिए सब कुछ सहन करने के लिए तैयार था।
राघव ने एक छोटे से हॉस्टल में कमरा लिया और अपनी पढ़ाई शुरू की। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, उसे एहसास हुआ कि यहाँ का खर्चा उसके अनुमान से कहीं ज्यादा है। पढ़ाई का दबाव, दिल्ली की महंगी जिंदगी, और घर से दूर रहने का अकेलापन – ये सब चीजें उसे परेशान करने लगीं।
एक दिन, राघव की मुलाकात एक सहपाठी से हुई, जिसका नाम अनुज था। अनुज दिल्ली का ही रहने वाला था और उसने राघव की स्थिति को समझते हुए उसे पार्ट-टाइम जॉब करने की सलाह दी। राघव ने अनुज की सलाह मानी और एक कैफे में वेटर का काम शुरू कर दिया।
राघव ने दिन में कॉलेज की क्लासेज़ अटेंड कीं और रात में कैफे में काम किया। वह बहुत थक जाता, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। उसकी मेहनत और लगन ने उसे दिल्ली की तेज़ रफ्तार जिंदगी में अपनी जगह बना दी।
कैफे में काम करते हुए, राघव की मुलाकात एक महत्वपूर्ण व्यक्ति से हुई, जो एक बड़ी कंपनी का सीईओ था। वह व्यक्ति राघव के मेहनती स्वभाव और ईमानदारी से प्रभावित हुआ और उसने राघव को अपनी कंपनी में इंटर्नशिप का ऑफर दिया। राघव ने इस मौके को दोनों हाथों से थाम लिया और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ इंटर्नशिप भी शुरू की।
इंटर्नशिप के दौरान, राघव ने अपने काम को इतने अच्छे से निभाया कि कंपनी ने उसे परमानेंट जॉब का ऑफर दे दिया। यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ था। अब वह न सिर्फ अपनी पढ़ाई के खर्चे को आसानी से उठा सकता था, बल्कि अपने परिवार को भी आर्थिक सहायता देने लगा।
राघव की मेहनत और ईमानदारी ने उसे एक साधारण से लड़के से एक सफल प्रोफेशनल बना दिया। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और कंपनी में तेजी से तरक्की की। आज राघव दिल्ली के एक अच्छे इलाके में रहता है, उसके पास एक अच्छी नौकरी है, और उसने अपने परिवार की जिंदगी को भी बेहतर बना दिया है।
राघव की कहानी बताती है कि कोई भी सपना बड़ा नहीं होता, बस उसे पूरा करने के लिए दृढ़ निश्चय और कठिन परिश्रम की जरूरत होती है। एक छोटे कस्बे के लड़के ने दिल्ली जैसे बड़े शहर में अपनी पहचान बनाई और यह साबित कर दिया कि अगर आपके इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं है।
“सपने चाहे जितने भी बड़े हों, उन्हें पूरा करने की ताकत सिर्फ आपके इरादों में होती है।”