Ramdhari singh dinkar -रामधारी सिंह दिनकर-“दुनिया में संघर्ष की पुकार”
Motivation ramdhari singh dinkar quotes -दिनकर की प्रेरक कविता
कर्मभूमि पर फल की आशा
रामधारी सिंह दिनकर-Ramdhari singh dinkar
कर्मभूमि पर चलो निरंतर, थमना यहाँ निषेध है,
जीवन की हर राह कठिन है, संघर्षों का ही गेह है।
आशा मत बाँधो फल की, केवल कर्म तुम्हारा सत्य,
परिश्रम से ही खिलते हैं, सफलता के मधुर रथ।
पसीने की बूंदें जब गिरतीं, धरती भी देती है सोना,
जो डरता है हार से, वो पाता नहीं कभी कोना।
जीवन की इस रणभूमि में, साहस से ही पाओ सम्मान,
पराजय भी सिखलाती है, आगे बढ़ने का अभियान।
स्वप्न वो ही सच्चे होते, जिनमें हो श्रम की आग,
मन में हो विश्वास अगर, तो नहीं कठिन कोई फाग।
रात अंधेरी हो चाहे, उम्मीदों का दीप जलाओ,
हर ठोकर से सीख लो, कभी न हार मानो।
फल की चिंता छोड़ कर, बस कर्म पथ पर चलो,
संघर्षों से जो निकले, वही असली रत्न बनो।
जीवन का यथार्थ यही है, पथ में बाधाएँ आएँगी,
पर अंततः विजय उसी की, जो निर्भय आगे बढ़ेगी।
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जीवन का यथार्थ
रामधारी सिंह दिनकर-Ramdhari singh dinkar
जीवन एक संग्राम है, मत समझो यह विश्राम है,
हर दिन नई चुनौती है, हर पल एक इम्तहान है।
सुख-दुख की इस बगिया में, फूलों के संग काँटे भी हैं,
जो साहस से चलना सीखे, वही असली विजेता है।
आंधियाँ आएँगी राहों में, बाधाएँ मिलेंगी हर मोड़ पर,
मन को डगमगाने मत देना, विश्वास रखो अपने ज़ोर पर।
हर असफलता एक सीख है, हर गिरना है एक सबक,
जो गिरकर फिर उठते हैं, वही होते हैं असल में मजबूत।
जीवन का यथार्थ यही है, संघर्ष ही सबसे ड़ा धर्म,
कभी मत रुकना इस राह में, चलो निरंतर, यही है कर्म।
मंज़िल मिलेगी निश्चित ही, अगर इरादे पक्के हों,
धैर्य और मेहनत का दीप जलाओ, सपनों के पंख खुद ब खुद खुलेंगे।
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उत्साह का दीप जलाओ
रामधारी सिंह दिनकर-Ramdhari singh dinkar
उत्साह का दीप जलाओ, अंधेरों से मत घबराओ,
हर कठिनाई एक अवसर है, अपने मन को यह समझाओ।
जीवन की राह में मुश्किलें हैं, पर तुम रुकना मत कभी,
हर गिरावट के बाद ही तो, मिलती है ऊँचाई नई।
मन में जोश और विश्वास भर लो, डर को दिल से बाहर कर दो,
समय का पहिया चलता रहेगा, बस अपने कर्मों पर ध्यान दो।
रात के बाद ही तो आती है, सुनहरी उजली सुबह नई,
सपनों को सच करने के लिए, जज़्बा चाहिए बस सही।
जो थक कर बैठ जाते हैं, वो मंज़िल नहीं पाते,
पर जो चलते रहते हैं, वो सितारे छू आते।
तो चलो, आगे बढ़ो बिना रुके,
उत्साह का दीप जलाओ, सपनों को अपने जियो खुले दिल से।
रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएं
रश्मिरथी (Rashmirathi)
रामधारी सिंह दिनकर
रश्मिरथी हूं मैं, सूर्य का सवार,
अंधकार से लड़ना है मेरा विचार।
रश्मियों की ज्वाला में जलता है प्रण,
संघर्ष ही है मेरा सच्चा रथ और धन।
ना रुका कभी तूफ़ानों के घेराव में,
ना झुका कठिनाइयों के भाराव में।
पथ कंटकों से भरा हो चाहे कितना भी,
मेरे हौसले को रोक न सके कोई क्षण भी।
रथ के पहिए हैं मेरे आत्मविश्वास के,
घोड़े दौड़ते हैं साहस और उल्लास के।
बांध लिया है इरादों को मन के लगाम में,
थाम लिया है जीत को अपने हर काम में।
सूर्य की किरणें मेरी ढाल हैं तेज़,
कर्म ही है मेरा धर्म, मेरा संदेश।
परिश्रम की मशाल जलती है मन के भीतर,
हर चुनौती से टकराना ही है मेरा चरित्र।
हार शब्द नहीं है मेरे शब्दकोश में,
डर भी कांपता है मेरे जोश में।
रश्मिरथी हूं, जलता रहूंगा अनंत तक,
सपनों को साकार करूंगा अंतिम तक।
हर ठोकर है मेरे लिए एक नया सबक,
हर हार में छुपा है एक विजय का झलक।
मैं रश्मिरथी हूं, अनंत ऊर्जा का स्रोत,
जीवन के रण में मेरा साहस है मेरे साथ।
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भावार्थ:
यह कविता महाभारत के महान योद्धा कर्ण के साहस और संघर्ष को दर्शाती है। रश्मिरथी, यानी “सूर्य का रथी,” कर्ण के जीवन में आई चुनौतियों और उनके अडिग आत्मविश्वास का प्रतीक है। कविता हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, यदि आपके भीतर संघर्ष की ज्वाला और आत्मबल है, तो आप हर बाधा को पार कर सकते हैं। कर्ण का चरित्र हमें सच्चाई, परिश्रम, और अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा की प्रेरणा देता है।
“संघर्ष ही है रश्मिरथी का सार, जो देता है उजाले का उपहार।”
“जहां रुकना मना है, वहीं से शुरू होती है जीत की कहानी।”
परशुराम की प्रतीक्षा (Parashuram Ki Pratiksha)
रामधारी सिंह दिनकर
क्यों कर रहे हो परशुराम की प्रतीक्षा?
क्या खो गई है भीतर की वह चेतना निष्क्रिय?
नहीं चाहिए अब कोई देवदूत या अवतार,
जागो! स्वयं बनो अपने जीवन का धाराधार।
परशुराम की शक्ति तुम्हारे ह्रदय में है,
उनका तेज़, उनकी ज्वाला, तुम्हारे स्वर में है।
अन्याय के विरुद्ध उठाओ अपनी आवाज़,
धर्म की रक्षा करो, यही है सच्चा प्रयास।
भय को तोड़ो, संकल्पों को धार दो,
कमज़ोरी छोड़ो, साहस को आकार दो।
परशुराम की प्रतीक्षा में क्यों गवाओ समय?
जब भीतर ही जल रहा है क्रांति का प्रमेय।
हाथों में उठाओ कर्म का परशु प्रखर,
मन में भरो आत्मबल का अमिट ज़हर।
लड़ो उन विचारों से जो जकड़ें तुम्हें,
तोड़ो उन बेड़ियों को जो रोकें तुम्हें।
युगों से जिसने सहा अन्याय का भार,
वो धरती अब पुकार रही तुम्हें बार-बार।
मत देखो आकाश की ओर किसी उद्धार के लिए,
खुद ही बनो परशुराम इस परिवर्तन के लिए।
क्रोध को बनाओ विवेक का रूप,
न्याय की ज्वाला में जलाओ हर झूठ।
परशुराम की प्रतीक्षा मत करो अब,
क्योंकि परशुराम स्वयं जाग चुके हैं—तुम्हारे भीतर।
परशुराम की प्रतीक्षा (Parashuram Ki Pratiksha) का भावार्थ:
यह कविता बताती है कि हमें किसी महान व्यक्ति या अवतार की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परशुराम जैसी शक्ति हर व्यक्ति के भीतर मौजूद है। अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए हमें स्वयं उठ खड़ा होना चाहिए। कविता आत्म-विश्वास और आत्मनिर्भरता का संदेश देती है कि परिवर्तन लाने के लिए हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानना होगा।
“परशुराम की प्रतीक्षा मत करो, स्वयं उठाओ परिवर्तन का परशु।”
“अन्याय के विरुद्ध पहली आवाज़ तुम्हारे भीतर से आती है।”
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रामधारी सिंह दिनकर की कविता हुंकार
प्रेरणादायक किताबों के लिंक के लिए यहाँ क्लिक करें।हुंकार (हुंकार)
रामधारी सिंह दिनकर
जागो, उठो, भर लो सीने में आग,
सुनो! गूंज रही है हुंकार की पुकार।
यह समय नहीं है डर के साये में रहने का,
यह समय है तूफ़ानों से टकराने का।
हुंकार है वो शक्ति, जो हिला दे ज़मीन,
जो तोड़ दे हर बेड़ी, हर जंजीर की तासीर।
यह आवाज़ है आत्म-विश्वास की गर्जना,
जो कर दे कठिनाइयों की भी हार सुनिश्चित।
जब अन्याय चीरता है मौन की चादर,
तब हुंकार बनती है सबसे बड़ी हथियार।
ना झुकने का प्रण, ना रुकने का इरादा,
बस आगे बढ़ना है—यही है मेरा वादा।
हुंकार है साहस का उद्घोष,
हृदय की गहराइयों से निकली आवाज़ का जोश।
ना तलवार चाहिए, ना ढाल की जरूरत,
बस चाहिए यकीन—खुद पर और अपने उसूलों पर।
जिनके दिल में जलती है सच्चाई की लौ,
उनकी हुंकार बन जाती है पूरी एक जंग का शोर।
डर को हराने की हिम्मत है जहां,
वहीं गूंजती है असली हुंकार की पहचान।
तो उठो, जागो, बनो अपने भाग्य के निर्माता,
हुंकार भरो अपनी रगों में, बनो क्रांति के संचालक।
क्योंकि जब तक है विश्वास, तब तक है जीत,
हुंकार ही है तुम्हारे भीतर छुपी सबसे बड़ी रीत।
हुंकार (Hunkar) का भावार्थ:
“हुंकार” कविता साहस, आत्मबल और जागरूकता का प्रतीक है। यह कविता हमें सिखाती है कि जब भी अन्याय, अत्याचार या चुनौतियाँ हमारे सामने खड़ी हों, तब हमें डरने की बजाय अपने भीतर की आवाज़ को सुनना चाहिए। यह आवाज़ ही हमारी असली ताकत है, जो हमें अडिग बनाती है। यह कविता आत्म-विश्वास और निडरता का संदेश देती है।
“हुंकार है आत्म-विश्वास की गूंज, जो तोड़ दे हर डर का जाल।”
“जब जुबां चुप हो जाए, तब दिल की हुंकार बन जाती है सबसे बड़ा हथियार।”
रणभेरी (रणभेरी)
रामधारी सिंह दिनकर
गूंज उठी है रणभूमि में रणभेरी,
जागो वीरों! यह है पुकार अजेय सैनानी की।
धधक रही है ज्वाला दिलों के भीतर,
अब न रुकना, न झुकना, बस बढ़ना है निर्भय पथ पर।
यह रणभेरी नहीं सिर्फ़ एक आवाज़ है,
यह गर्जना है हिम्मत और साहस का राज़ है।
हर चोट पर खिलखिलाता है जो जीवन,
वही बनता है संघर्ष का सच्चा दर्पण।
उठो, संभालो अपने कर्मों की तलवार,
धैर्य को बनाओ अपनी ढाल अपार।
कदम-कदम पर चुनौती है खड़ी,
पर याद रखो—रणभेरी है तुम्हारे हौसले की गूंज बड़ी।
रणभूमि में हार और जीत तो एक भ्रम है,
सच्ची विजय है बस साहस में, यही धर्म है।
जब मन डगमगाए, जब राह लगे कठिन,
तब सुनो अपने भीतर बजती रणभेरी की धुन।
यह रणभेरी पुकारती है जागने को,
खुद पर विश्वास रख, जीतने को।
ना देखो पीछे, ना डर से डरो,
बस अपने सपनों के लिए लड़ो और बढ़ो।
क्योंकि रणभेरी है उस चेतना की आवाज़,
जो दिलों में भर देती है अदम्य विश्वास।
तो उठो, जागो, बनो अपने भाग्य के योद्धा,
क्योंकि यह रणभेरी है तुम्हारे अद्भुत साहस की गाथा।
रणभेरी (Ranbheri) का भावार्थ:
“रणभेरी” कविता संघर्ष और युद्ध के लिए प्रेरणा देती है। यह कविता बताती है कि जीवन एक रणभूमि है, जिसमें साहस, धैर्य और आत्मविश्वास के साथ लड़ना आवश्यक है। रणभेरी सिर्फ युद्ध का बिगुल नहीं है, बल्कि यह भीतर जागती चेतना का प्रतीक है, जो हमें बताती है कि कभी हार मत मानो और अपने सपनों के लिए लड़ते रहो।
“रणभेरी है भीतर की पुकार, जो बनाती है हर हार को जीत का आधार।”
“जहां साहस गूंजता है, वहीं बजती है सच्ची रणभेरी की धुन।”
विद्रोही (Vidrohi)
रामधारी सिंह दिनकर
मैं विद्रोही हूं, चुप रहना मेरा स्वभाव नहीं,
अन्याय के आगे सिर झुकाना मेरा जवाब नहीं।
जंजीरों को तोड़ना है मेरा इरादा,
सत्य और न्याय के लिए है मेरा वादा।
जो दबाते हैं सच्चाई को अपने घमंड में,
मैं बनता हूं आग, जलाता हूं उनके भ्रम में।
डर की परछाईयों में नहीं पलता मेरा विचार,
मैं विद्रोही हूं, मेरी रगों में बहता है क्रांतिकार।
सिस्टम के ढांचे में जो बंद है सोच,
मैं उसे तोड़ने आया हूं, यही है मेरा जोश।
ना डरता हूं गिरने से, ना हार से थमता हूं,
मैं उम्मीदों का ज्वाला हूं, संघर्ष में चमकता हूं।
विद्रोह है मेरा अस्तित्व, मेरी पहचान,
हर अन्याय के खिलाफ उठाता हूं अपनी जुबान।
किसी का अनुयायी नहीं, मैं खुद ही क्रांति हूं,
अंधेरों में जलती उम्मीदों की ज्योति हूं।
यदि चुप रहूं, तो खो दूं अपना अस्तित्व,
इसलिए गरजता हूं, बन जाता हूं साक्षात प्रतिवाद।
मेरे शब्द नहीं, आग के शोले हैं,
मेरे विचार नहीं, तूफ़ान के बोल हैं।
मैं विद्रोही हूं, व्यवस्था को हिला देने वाला,
सच्चाई के लिए हर जंग लड़ने वाला।
जब तक अन्याय है इस धरती पर कहीं,
तब तक जलता रहेगा विद्रोही का अंगार यहीं।
विद्रोही (Vidrohi) का भावार्थ:
“विद्रोही” कविता विद्रोह की भावना को व्यक्त करती है। यह कविता सिखाती है कि जब अन्याय, असमानता और अत्याचार समाज में फैले हों, तब चुप रहना अपराध है। विद्रोह वह शक्ति है, जो सच्चाई और न्याय के लिए लड़ती है। यह कविता बताती है कि हमें समाज के गलत विचारों और परंपराओं के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए और बदलाव के लिए संघर्ष करना चाहिए।
“विद्रोह वही सच्चा है, जो सत्य की लौ में जलता है।”
“जहां अन्याय खड़ा है, वहीं विद्रोही की आवाज़ गूंजती है।”
सारांश
इन सभी कविताओं में एक साझा भावना है—साहस, संघर्ष, आत्म-विश्वास, और न्याय के लिए लड़ने का संकल्प।
रश्मिरथी हमें संघर्ष में भी गर्व से खड़े रहना सिखाता है।
परशुराम की प्रतीक्षा आत्मनिर्भरता का संदेश देती है।
हुंकार आत्मबल की गर्जना है।
रणभेरी संघर्ष के लिए प्रेरणा देती है।
विद्रोही अन्याय के खिलाफ विद्रोह करने का साहस सिखाता है।